समाचार स्रोत तापी हलचल द्वारा/बैतूल : पूरी दुनिया में एक ही स्थान पर बारह ज्योर्तिलिंग न तो प्राण प्रतिष्ठित है और न कहीं देखे गए है लेकिन सूर्यवंश में जन्मी एवं चन्द्रवंश में बिहाई पुण्य सलिला मां सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के किनारे शिवधाम बारहलिंग में आज भी तेत्रायुग में भगवान विश्वकर्मा की मदद से उनकी ऊंगलियो की मदद से ताप्ती नदी की काली चटटनो पर ऊकेरे गए बारह ज्योर्तिलिंग मौजूद है। प्रतिवर्ष श्रावण माह में पुण्य सलिला सूर्यपुत्री ताप्ती अपनी जलधारा से इन बारह तपेश्वर ज्योर्तिलिंगो का जलाभिषेक करती है। श्रावण माह में सोमवार के दिन सुर्योदय एवं सूर्यास्त के समय चमत्कारिक रूप से इनका जलाभिषेक होता चला आ रहा है। दुर्लभ एवं मनोहरी दृश्य केवल वहां पर चर्तुमास काटने वालो को ही देखने को मिलता है।
मां सूर्यपुत्री ताप्ती की महीमा जन-जन तक पहुंचाने के लिए बीते दो दशक से काम कर रही मध्यप्रदेश शासन से पंजीकृत मां सूर्यपुत्री ताप्ती जागृति समिति के प्रदेश सचिव सतीश पंवारने बताया कि बैतूल जिले के मुलतापी सरोवर से निकलने वाली पुण्य सलिला मां सूर्यपुत्री ताप्ती नदी 750 किमी का सफर सूरत गुजरात तक करती है जिसमें उनका बैतूल जिले में 250 किमी का सर्पाकार सफर है। शिवधाम बारहलिंग में त्रेतायुग में मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम अपनी जीवन संगनी मां सीता एवं भाई लक्ष्मण जी के संग तीन दिनो तक रूके थे। यहां पर मौजूद सीता स्नानागार और बारह ज्योर्तिलिंग इस बात के प्रमाण है। देश दुनिया में बिना पिण्डी के बारह ज्योर्तिलिंगो को श्री राम ने प्राण प्रतिष्ठित कर अपने वंश में जन्मी ताप्ती नदी के किनारे अपने ज्ञात-अज्ञात पितरो का तर्पण किया साथ ही अयोध्या से निकलते समय चित्रकुट में उन्हे अपने पिता के निधन का दुखद समाचार मिल चुका था।
ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते उन्होने माता-एवं भाई के संग अपने पिता का भी तर्पण किया था। जब श्री राम यहां पर पहुंचे थे तब श्राद्ध पक्ष समाप्त हो चुका था। शास्त्रो में ऐसा कहा गया हे कि जब तक ज्येष्ठ पुत्र जीवित है तब तक पिता का तर्पण अन्य पुत्र नहीं कर सकते, इसलिए श्राद्ध पक्ष समाप्त होने के बाद कार्तिक माह की पूर्णिमा को शिवधाम बारहलिंग में उन्होने अपने पितरो एवं पिता का तर्पण कर उनका मोक्ष स्वर्ग का रास्ता खोल दिया। श्राद्ध पक्ष में फाल्गुनी नदी में मां सीता के द्वारा भगवान श्री राम की अनुउपस्थिति में किया गया तर्पण के समय राजा दशरथ स्वर्ग से आए। ऐसी लोकथाए एवं किवदंतिया है कि राजा दशरथ को श्रवण कुमार की हत्या का बह्म हत्या का पाप लगा था।
ऐसे में श्रापित व्यक्ति को मृत्यु उपरांत स्वर्ग नहीं मिल पाता है लेकिन श्री रामने शिवधाम बारहलिंग में अपने पितरो एवं पिता का तर्पण कर उन्हे बह्महत्या के पाप से मुक्ति दिला दी थी, जिसके चलते उन्हे स्वर्ग मिला था। पुण्य सलिला मां सूर्यपुत्री ताप्ती देश-दुनिया की एक मात्र ऐसी पुण्य सलिला है जिसका अंजुली भर जल लेकर तर्पण करने से मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। जहां एक ओर पुण्य सलिला गंगा साल में एक बार अपने में विर्सजित अस्थियो को लेकर गंगा अष्टमी के दिन मां नर्मदा के पास आकर नर्मदा में अस्थियां विर्सजित करती है, वही दुसरी ओर ताप्ती नदी एक मात्र ऐसी नदी है जिसमें विर्सजित अस्थियां विर्सजन के तीन दिनो में घुल जाती है।
24 प्रकल्पो में धरती पर विभिन्न नामो से जानी एवं पहचानी जाने वाली ताप्ती जी भगवान सूर्य एवं माता छाया की पुत्री है तथा न्याय के देवता शनि एवं देवी भ्रदा की सगी छोटी बहन है। कुरूवंश के संस्थापक राजा कुरू की माता एवं राजा सवरण की पत्नि है। कुरूवंश में जन्म शान्तनु के संग बिहाई देवी गंगा ताप्ती जी की पौत्र वधु कहलाती है। मां ताप्ती नदी के किनारे शिवधाम बारहलिंग में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी आकर रूके थे। यहां पर मौजूद रानी विक्टोरिया फाल एवं रानी पठार तथा हाथी खुर्र इस बात के प्रमाण है कि यहां पर हाथियो का लावा लश्कर लेकर ब्रिटश्ेन की महारानी विक्टोरिया भी ताप्ती दर्शन के लिए आई थी।
उनकी मौजूदगी का अहसास कराता रानी पठार एवं विक्टोरिया फाल आज भी मनोरम दृश्य के लिए जाना-पहचाना स्थान है। मुलतापी से लेकर सूरत तक ताप्ती नदी के किनारे सौ सवा सौ धार्मिक द़ृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है जिसमें एक प्रकाशा तीर्थ भी है जहां पर आधे दिन का महाकुंभ लगता है। ताप्ती नदी कि किनारे चांगदेव में ताप्ती-पूर्णा का मिलन के साथ-साथ वहां पर अनेक तीर्थ स्थल मौजूद है। प्रतिवर्ष शिवधाम बारहलिंग में भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के रूकने पर आदिवासी जतरा (मेला) लगता है। वर्तमान समय मे शिवधाम बारहलिंग में राम द्वार एवं सीता द्वार बने हुए है।
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